राजस्थान के राजसमंद जिले में
स्थित कुम्भलगढ़ किले कि दीवार 36 किलोमीटर लम्बी तथा 15 फीट चौड़ी है। इस किले का निर्माण 15th
century में महाराणा कुम्भा
ने करवाया था। इस किले को कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर
बनाया गया है | इस किले के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकि हिन्दू मंदिर हैं। कुम्भलगढ़ महान शासक महाराणा प्रताप की जन्मभूमि भी है।
इसके निर्माण कि कहानी भी बड़ी
दिलचस्प है। 1443 में राणा कुम्भा ने इसका निर्माण
शुरू करवाया पर निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पाया, क्यूंकि इसमें
बहुत अड़चने आने लगी। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को
बुलाया। संत ने बताया यह काम तभी आगे
बढ़ेगा जब स्वेच्छा से कोई
मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि
आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलि देने के लिए तैयार है|
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए
और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का
मंदिर बनाया जाए। दोस्तों ठिक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक
चलने के बाद रुक गया और वाही उसका सिर धड़ से अलग कर दिया
गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार “हनुमान पोल ” है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा
मुख्य द्वार है।
राजस्थान पर्यटन विभाग हर साल महाराणा कुम्भा
की याद में तीन दीन एक विशाल महोत्सव का आयोजन कुम्भलगढ़ में करता है। तीन दिन के
इस महोत्सव में किले को रौशनी से सजाया जाता है। इस दौरान वहाँ के लोग नृत्य और संगीत कला का
प्रदर्शन भी करते है।
कहा जाता है की कुम्भलगढ़ किला को देश का
सबसे मजबूत किला है
जिसे आज तक सीधे युद्ध में जीतना नामुमकिन है। गुजरात के अहमद शाह से लेकर महमूद
ख़िलजी सभी ने आक्रमण किया लेकिन कोई भी युद्ध में इसे जीत नही सका।
इस किले के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग हमेशा
अजेय ही रहा है |
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