कावेरी नदी कर्नाटक तथा उत्तरी तमिलनाडु में बहनेवाली नदी है | इसे दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है | पुराणों ने इस नदी को अग्नि देवता की 16 नदी पत्नियों में से एक बताया है। कर्नाटक राज्य के कुर्ग के पास ब्रह्मगिरि पर्वत पर चंद्रतीर्थ ही इस नदी की उद्गम स्थली है। श्री रंगपट्टम, नरसीपुर, तिरुमकुल, शिव समुद्रम आदि कई तटवर्ती तीर्थ व नगर इसके किनारे स्थित हैं।
- कर्नाटक राज्य में एक सुन्दर क्षेत्र है, कुर्ग। कुर्ग के ‘ब्रह्मगिरी’ (सह्या) पर्वत पर 'तालकावेरी' नामक तालाब है। यही तालाब कावेरी नदी का उदगम-स्थान है।
- यह सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण-पूर्व की दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई लगभग 800 किमी मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है ।
- कावेरी नदी में मिलने वाली मुख्य नदियों में हरंगी, हेमवती, नोयिल, अमरावती, सिमसा , लक्ष्मणतीर्थ, भवानी, काबिनी मुख्य हैं ।
- कावेरी नदी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंट कर फिर एक हो जाती है, जिससे तीन द्वीप बन गए हैं, उन द्वीपों पर क्रमश: आदिरंगम , शिवसमुद्रम तथा श्रीरंगम नाम से श्री विष्णु भगवान के भव्य मंदिर हैं।
- पवित्र नदी कावेरी का दक्षिण भारत में वही स्थान प्राप्त है जो उत्तर भारत में गंगा को।
- कावेरी के जन्म के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार अगस्त्य ऋषि कावेरी को कैलाश पर्वत से लेकर आये थे। कथा इस प्रकार है- एक बार भयंकर सूखा पड़ा जिससे दक्षिण भारत में स्थिति बहुत ख़राब हो गयी। यह देखकर अगस्त्य ऋषि बहुत दुखी हुए और मानव जाति को बचाने के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा की अगर वे कैलाश पर्वत से बर्फीला पानी लेकर जाएँ तो दक्षिण में नदी का उद्गम कर सकतें हैं। अगस्त्य ऋषि कैलाश पर्वत पर गए, वहां से बर्फीला पानी अपने कमंडल में लिया और दक्षिण दिशा की और लौट चले। वें नदी के उद्गम स्थान की खोज करते हुए कुर्ग पहुंचे। उचित उद्गम स्थान की खोज करते-करते ऋषि थक गए और अपना कमंडल भूमि पर रखकर विश्राम करने लगे। तभी वहां पर एक कौवा उड़ते हुए आया और कमंडल पर बैठने लगा। कौवे के बैठते ही कमंडल उलट गया और उसका पानी भूमि पर गिर गया। जब ऋषि ने यह देखा तो उन्हें बहुत क्रोध आया। लेकिन तभी वहां गणेश जी प्रकट हुए और उन्होंने ऋषि से कहा कि मैं ही कौवे का रूप धारण करके आपकी मदद के लिए आया था। कावेरी के उद्गम के लिए यही स्थान उचित है। यह सुनकर ऋषि प्रसन्न हुए और भगवान गणेश अंतर्ध्यान हो गए।
- कर्नाटक में सिंचाई के लिए कावेरी पर बने हुए बांधों में सबसे बड़ा कण्णम्बाड़ी का बांध है। इस बांध के कारण जो विशाल जलाशय बना है, उसे ‘कृष्णराज सागर’ कहते हैं।
- कावेरी के उदगम-स्थान पर हर साल तुला सक्रांति (17 अक्टूबर) के दिन उत्सव मनाया जाता है। उस दिन कावेरी की मूर्ति की विशेष पूजा होती है।
- कावेरी नदी के तट पर बसा हुआ कुंभकोणम् नगर दक्षिण भारत का प्रमुख पावन तीर्थ है। यहां प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ का मेला लगता है।
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ReplyDeleteVery good and interesting
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