आमेर दुर्ग भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है | आमेर दुर्ग को आमेर महल या आमेर का किला भी कहा जाता है | आमेर दुर्ग अरावली पर्वतमाला के एक पर्वत चील का टीला के ऊपर बना हुआ है | आमेर क्षेत्र मूल रूप से स्थानीय मीणाओं द्वारा बसाया गया था | जिस पर कालांतर में कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम (दिसम्बर 21, 1550-जुलाई 6, 1614) ने राज किया और इस दुर्ग का निर्माण करवाया | ये दुर्ग अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिए भी जाना जाता हैं |
लाल बलुआ पत्थर एवं संगमर्मर से निर्मित ये आकर्षक दुर्ग पहाड़ी के चारों स्तरों पर बना हुआ है, जिसमें प्रत्येक में विशाल प्रांगण है | इसमें दीवान-ए-आम अर्थात जन साधारण का प्रांगण, दीवान-ए-खास अर्थात विशिष्ट प्रांगण, शीश महल या जय मंदिर एवं सुख निवास आदि भाग है |
मावठा झील आमेर दुर्ग के नीचे स्थित है | झील के एक किनारे के साथ-साथ ही दुर्ग में जाने का पैदल मार्ग है, एवं एक सुंदर उद्यान भी बना है। इसका निर्माण कछवाहा राजा जयसिंह के समय में किया गया था।
वर्षा ऋतू में मावठा झील पानी से भर जाती है एवं तब यहाँ की सुन्दरता देखने लायक होती है। मावठा झील के बीच में एक छोटा-सा टापू बना है जिस पर एक उद्यान भी है। इसे केसर क्यारी कहा जाता है, क्योंकि कभी इसमें सुगन्धित केसर बोई जाती थी, जिससे महल के निकट का वातावरण महकता रहता था।
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मावठा झील आमेर दुर्ग के नीचे स्थित है | झील के एक किनारे के साथ-साथ ही दुर्ग में जाने का पैदल मार्ग है, एवं एक सुंदर उद्यान भी बना है। इसका निर्माण कछवाहा राजा जयसिंह के समय में किया गया था।
वर्षा ऋतू में मावठा झील पानी से भर जाती है एवं तब यहाँ की सुन्दरता देखने लायक होती है। मावठा झील के बीच में एक छोटा-सा टापू बना है जिस पर एक उद्यान भी है। इसे केसर क्यारी कहा जाता है, क्योंकि कभी इसमें सुगन्धित केसर बोई जाती थी, जिससे महल के निकट का वातावरण महकता रहता था।
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आमेर दुर्ग का इतिहास
आमेर की स्थापना 967 ई. में राजस्थान के मीणाओं के चंदा वंश के राजा एलान सिंह द्वारा की गई थी| वर्तमान आमेर दुर्ग जी दिखाई देता है वह आमेर के कछवाहा राजा मानसिंह के शासन में पुराने किले के अवशेषों पर बनाया गया है | राजा मानसिंह के बनवाये महल का अच्छा विस्तार उनके वंशज जय सिंह प्रथम द्वारा किया गया | वर्तमान आमेर की अधिकांश इमारतें राजा मानसिंह प्रथम के शासन में बनवायी गई थी | उनमें से कुछ प्रमुख इमारतें हैं आमेर महल का दीवान-ए-खास और अत्यधिक सुन्दरता से चित्रित किया हुआ गणेश पोल द्वार जिसका निर्माण मिर्ज़ा राजा जय सिंह प्रथम ने करवाया था | यह महल कछवाहा राजपूत महाराजाओं एवं उनके परिवारों का निवास स्थान हुआ करता था।
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आमेर दुर्ग का नक्शा
यह महल चार मुख्य भागों में बंटा हुआ है जिनके प्रत्येक के प्रवेशद्वार और प्रांगण हैं | मुख्य प्रेवश सूरज पोल द्वार से है जिससे जलेब चौक में आते है | जलेब चौक प्रथम मुख्य प्रांगण है तथा बहुत बड़ा बना है | यह द्वार पूर्वाभिमुख है एवं इससे उगते सूरज की किरणें दुर्ग में पवेश पाती है, इसलिए इसे सूरज पोल कहा जाता है |
जलेब चौक अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है सैनिकों के एकत्रित होने का स्थान। यह आमेर महल के चार प्रमुख प्रांगणों में से एक है जिसका निर्माण सवाई जय सिंह के शासनकाल (1693-1743 ई.) के बीच किया गया था।
प्रथम प्रांगण
जलेबी चौक से एक शानदार सीढ़ीनुमा रास्ता महल के मुख्य प्रांगण को जाता है | यहां प्रेवश करते हुए दायीं ओर शिला देवी मन्दिर का रास्ता है |
अगला द्वार है गणेश पोल है, जिसका नाम भगवान गणेश पर है | यह एक त्रि-स्तरीय इमारत है जिसका अलंकरण मिर्ज़ा राजा जय सिंह (1621-1627) के आदेशानुसार किया गया था। इस द्वार के ऊपर सुहाग मन्दिर है, जहाँ से राजवंश की महिलायें दीवान-ए-आम में आयोजित हो रहे समारोहों आदि का दर्शन झरोखों से किया करती थीं |
शिला देवी मन्दिर: जलेब चौक के दक्षिणी भाग में शिला माता का एक छोटा किन्तु भव्य एवं ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। ये शिला माता राजपरिवार की कुल देवी मानी जाती हैं। यह मन्दिर कछवाहा राजपूतों की कुलदेवी शिला माता को समर्पित है | ये शिला देवी मूलतः अम्बा माता का ही रूप हैं एवं कहा जाता है कि आमेर या आंबेर का नाम इन्हीं अम्बा माता के नाम पर ही अम्बेर पड़ा था जो कालान्तर में आम्बेर या आमेर हो गया। माता की प्रतिमा एक शिला पर उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है। मन्दिर के मुख्य प्रवेशद्वार में चांदी के पत्र से मढ़े हुए दरवाजें की जोड़ी है |
द्वितीय प्रांगण
प्रथम प्रांगण से मुख्य सीढ़ी द्वारा द्वितीय प्रांगण में पहुंचते हैं, जहाँ दीवान-ए-आम बना हुआ है | इसका प्रयोग जनसाधारण के दरबार हेतु किया जाता था | दीवान-ए-आम एक ऊँचे चबूतरे पर बना 27 स्तंभों वाला हॉल है | यहाँ राजा स्थानीय जन साधारण की समस्याएं, विनती एवं याचिकाएं सुनते एवं उनका निवारण किया करते थे।
तृतीय प्रांगण
तीसरे प्रांगण में महाराजा, उनके परिवार के सदस्यों एवं परिचरों के निजी कक्ष बने हुए है | इस प्रांगण में दो इमारतें एक-दुसरे के आमने सामने बनी है | इनके बीच में मुगल उघान शैली के बाग बने हुए हैं | प्रवेशद्वार के बायीं ओर की इमारत को जय मन्दिर कहते हैं। इस प्रांगण में बनी दूसरी इमारत जय मन्दिर के सामने है और इसे सुख निवार या सुख महल नाम से जाना जाता है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार चंदन की लकड़ी से बना है और इसमें जालीदार संगमर्मर का कार्य है।
शीश महल: जय मन्दिर का एक हिस्सा है जो बेहद खूबसूरती से दर्पणों से सजाया गया है | छत और दीवारों पर लगे शीश के टुकड़े, प्रकाश प्रतिबिंबित होते है और चमक पुरे हॉल में फैल जाती है | जयपुर के राजा, राजा जय सिंह ने इस हॉल का निर्माण अपने विशेष मेहमानों के लिए करवाया था |शीष महल के स्तंभों में से एक के आधार पर नक्काशी किया गया जादूई पुष्प यहां का विशेष आकर्षण है। शीष महल का निर्माण मान सिंह ने 16वीं शताब्दी में करवाया था और ये 1727 ई में पूर्ण हुआ। यह जयपुर राज्य का स्थापना वर्ष भी था।
मानसिंह प्रथम का महल: इस प्रांगण के दक्षिण में मानसिंह प्रथम का महल है और यह महल का पुरातनतम भाग है। यह यहां का मुख्य महल है। इस महल से निकास का मार्ग आमेर के शहर को जाता है जहां विभिन्न मन्दिरों, हवेलियों एवं कोठियों वाला पुराना शहर है। तृतीय प्रांगण में बने उद्यान के पूर्व में ऊंचे चबूतरे पर जय मन्दिर एवं पश्चिम में ऊंचे चबूतरे पर सुख निवास बना है। ये दोनों ही मिर्ज़ा राजा जय सिंह (1623-68) के बनवाये हुए है।
त्रिपोलिया गेट: यह गेट पश्चिमी ओर से महल को प्रवेश देता है और तीन ओर खुलता है – एक जलेब चौक को, दूसरा मान सिंह महल को एवं तीसरा दक्षिण में बनी जनाना ड्योढ़ी की ओर।
सिंह द्वार: इस द्वार से महल परिसर के निजी भवनों को प्रवेश मिलता है और इसकी सुरक्षा एवं सशक्त होने के कारण ही इसे सिंह द्वार कहा जाता था।
चतुर्थ प्रांगण
चौथे प्रांगण में राजपरिवार की महिलायें निवास करती थीं। इनके अलावा रानियों की दासियाँ तथा यदि हों तो राजा की उपस्त्रियाँ (अर्थात रखैल) भी यहीं निवास किया करती थीं। इस प्रभाग में बहुत से निवास कक्ष हैं जिनमें प्रत्येक में एक-एक रानी रहती थीं, एवं राजा अपनी रुचि अनुसार प्रतिदिन किसी एक के यहाँ आते थे, किन्तु अन्य रानियों को इसकी भनक तक नहीं लगती थी कि राजा कब और किसके यहाँ पधारे हैं। सभी कक्ष एक ही गलियारे में खुलते थे।
जस मंदिर: यहाँ जस मन्दिर नाम से एक निजी कक्ष भी है, जिसमें कांच के फ़ूलों की महीन कारी गरी की सजावट है एवं इसके अलावा इसमें सिलखड़ी या संगमर्मरी खड़िया (प्लास्टर ऑफ़ पैरिस) की उभरी हुई उत्कृष्ट नक्काशी कार्य की सज्जा भी है।
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आमेर दुर्ग को यूनेस्को विश्वदाय समिति ने फ्नोम पेन में जून 2013 में आयोजित 37वें सत्र की बैठक में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल सूची में सम्मिलित किया था। पुरातत्त्वविज्ञान एवं संग्रहालय विभाग के अधीक्षक (Superintendent of the Department of Archaeology and Museums) द्वारा बताये गए वार्षिक पर्यटन आंकड़ों के अनुसार यहाँ 5000 पर्यटक प्रतिदिन आते हैं। वर्ष 2007 के आंकड़ों में यहां 14 लाख दर्शकों का आगमन हुआ था।
आमेर दुर्ग बहुत सी हिन्दी चलचित्र (बॉलीवुड) जगत की फिल्मों में दिखाया गया है। फिल्म बाजीराव मस्तानी जिसमें अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का कत्थक न्रत्य - मोहे रंग दो लाल..। नामक गीत पर इसी दुर्ग को पृष्ठभूमि में रखकर किया गया है। इसका मंचन केसर क्यारी बगीचे में हुआ है। इसके अलावा मुगले आजम, जोधा अकबर, शुद्ध देसी रोमांस और भूल भुलैया में भी दिखाया गया है |
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