Skip to main content

क्राइस्ट द रिडीमर - दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्ट डेको स्टैच्यू

क्राइस्ट द रिडीमर ब्राजील के रियो डी जनेरियो, में स्थापित ईसा मसीह की एक प्रतिमा है जिसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्ट डेको स्टैच्यू माना जाता है। इसे फ्रांसीसी मूर्तिकार पॉल लैंडोव्स्की और फ्रांसीसी इंजीनियर अल्बर्ट कैकोट के सहयोग से ब्राजील के इंजीनियर हेटर दा सिल्वा कोस्टा द्वारा बनाया गया है। रोमानियाई मूर्तिकार गिरोघे लियोनिडा ने चेहरा बनाया है। 1922 से 1931 के बीच बनाई गई यह प्रतिमा अपने 9.5 मीटर (31 फीट) आधार सहित 39.6 मीटर (130 फीट) लंबी और 30 मीटर (98 फीट) चौड़ी है।
इसका वजन 635 टन (700 शॉर्ट टन) है और तिजुका फोरेस्ट नेशनल पार्क में 700-मीटर (2,300 फीट) उच्चे कोर्कोवाडो पर्वत की चोटी पर स्थित है जहाँ से पूरा शहर दिखाई देता है। ईसाई धर्म के एक प्रतीक के रूप में यह प्रतिमा रियो और ब्राजील की एक पहचान बन गयी है। यह मजबूत कांक्रीट और सोपस्टोन से बनी है |
क्राइस्ट द रिडीमर

इतिहास

कोर्कोवाडो की चोटी पर एक विशाल प्रतिमा खड़ी करने का विचार पहली बार 1850 के दशक के मध्य में सुझाया गया था जब कैथोलिक पादरी पेड्रो मारिया बॉस ने राजकुमारी ईसाबेल से एक विशाल धार्मिक स्मारक बनाने के लिए धन देने का आग्रह किया था। राजकुमारी ईसाबेल ने इस विचार पर अधिक ध्यान नहीं दिया और ब्राजील के एक गणतंत्र बन जाने के बाद 1889 में इसे खारिज कर दिया गया। पर्वत पर एक अभूतपूर्व प्रतिमा स्थापित करने का दूसरा प्रस्ताव रियो के कैथोलिक सर्कल द्वारा 1921 में लाया गया। इस समूह ने प्रतिमा के निर्माण के समर्थन में दान राशि और हस्ताक्षर जुटाने के लिए सेमाना डू मोनुमेंटो ("मोनुमेंट वीक") नामक एक कार्यक्रम का आयोजन किया। दान ज्यादातर ब्राजील के कैथोलिक समुदाय से आए। "ईसा मसीह की प्रतिमा" के लिए चुने गए डिजाइनों में ईसाई क्रॉस का एक प्रतिनिधित्व, अपने हाथ में पृथ्वी को लिए ईसा मसीह की एक मूर्ति और विश्व का प्रतीक एक चबूतरा शामिल था। खुली बाहों के साथ क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा को चुना गया। यह शांति का प्रतीक भी है। पक्षियों के इस पर बैठने से रोकने के लिए प्रतिमा के शीर्ष पर छोटी-छोटी कीलें भी लगाई गयी हैं।
[Read more : माचू पिच्चु के बारे में जानिए]
स्थानीय इंजीनियर हीटर डा सिल्वा कोस्टा ने प्रतिमा को रूपांकित किया; प्रतिमा का ढांचा फ्रांसीसी मूर्तिकार पॉल लैंडोव्स्की द्वारा तैयार किया गया। इंजीनियरों और तकनीशियनों के एक समूह ने लैंडोव्स्की द्वारा की गयी प्रस्तुतियों का अध्ययन किया और फौलाद की बजाय संरचना को सुदृढ़ कांक्रीट से (अलबर्ट कैकोट द्वारा रूपांकित किया गया) तैयार करने का निर्णय लिया गया, जो क्रॉस के स्वरूप की प्रतिमा के लिए अधिक उपयुक्त था। बाहरी परतें सोपस्टोन की हैं जिसे इसके चिरस्थाई गुणों और इस्तेमाल में आसानी के कारण चुना गया था। निर्माण में 1922 से 1931 तक नौ साल लग गए और इसकी लागत 250,000 अमेरिकी डॉलर के समकक्ष (2009 में लगभग 3.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) थी। स्मारक को 12 अक्टूबर 1931 को खोला गया था।
7 जुलाई 2007 को स्विटजर्लैड-स्थित द न्यू ओपन वर्ल्ड कारपोरेशन द्वारा बनायी गयी एक सूची में क्राइस्ट द रिडीमर को दुनिया के नये सात अजूबों में से एक का नाम दिया गया।

Dear Knowledge Chat readers आपको यह article कैसा लगा comment के द्वारा जरुर बताईएगा | अपने दोस्तों और परिवार के साथ ये article facebook, whatsapp and twitter पर शेयर करना ने भूले | ऐसी मजेदार जानकारियां प्राप्त करने के लिए हमे subscribe करे |

Comments

Popular posts from this blog

यमुना नदी की महत्वपूर्ण जानकारी (Important information about river Yamuna)

यमुना जिसे जमुना के नाम से भी जाना जाता है भारत की एक नदी है | यमुना नदी गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है | यह यमुनौत्री नामक जगह से निकलती है | यमुना का उद्गम स्थान हिमालय  के हिमाच्छादित श्रंग बंदरपुच्छ ऊँचाई 6200 मीटर से 7 से 8 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित कालिंद पर्वत है, जिसके नाम पर यमुना को कालिंदजा अथवा कालिंदी  कहा जाता है। पश्चिमी  हिमालय   से निकल कर  उत्तर प्रदेश  एवं  हरियाणा   की सीमा के सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी  सहारनपुर  (मैदानी इलाका) पहुँचती है। फिर यह दिल्ली,  आगरा   से होती हुई  इलाहाबाद   में गंगा   नदी में मिल जाती है। यमुना नदी की औसत गहराई 10 फीट (3 मीटर) और अधिकतम गहराई 35 फीट (11 मीटर) तक है। दिल्ली के निकट नदी में, यह अधिकतम गहराई 68 फीट (50 मीटर) है। आगरा में, यह गहराई 3 फुट (1 मीटर) तक हैं। यमुना नदी की लम्बाई 1,376 की.मी. हैं | यमुना नदी के किनारे बसे नगर दिल्ली, आगरा, हमीरपुर, इलाहाबाद आदि हैं | इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन  उल्लेखनीय हैं। दुनियां के सात अजुबों में से एक विश्‍व प्रसिद्ध इमारत ताजम

कावेरी नदी की महत्वपूर्ण जानकारी (Important information about river Kaveri)

कावेरी नदी कर्नाटक तथा उत्तरी तमिलनाडु में बहनेवाली नदी है | इसे दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है | पु राणों ने इस नदी को अग्नि देवता की 16 नदी पत्नियों में से एक बताया है। कर्नाटक राज्य के कुर्ग के पास ब्रह्मगिरि पर्वत पर चंद्रतीर्थ ही इस नदी की उद्गम स्थली है। श्री रंगपट्टम, नरसीपुर, तिरुमकुल, शिव समुद्रम आदि कई तटवर्ती तीर्थ व नगर इसके किनारे स्थित हैं। कर्नाटक राज्य में  एक सुन्दर क्षेत्र है, कुर्ग । कुर्ग के ‘ब्रह्मगिरी’ (सह्या) पर्वत पर 'तालकावेरी' नामक तालाब है। यही तालाब कावेरी नदी का उदगम-स्थान है। यह सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण-पूर्व की दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई लगभग 800 किमी मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है । कावेरी नदी में मिलने वाली मुख्य नदियों में हरंगी, हेमवती, नोयिल, अमरावती, सिमसा , लक्ष्मणतीर्थ, भवानी, काबिनी मुख्य हैं । कावेरी नदी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंट कर फिर एक हो जाती है, जिससे तीन द्वीप बन गए हैं, उन द्वीपों पर क्रमश: आदिरंगम , शिवसमुद्रम तथा श्रीरंगम नाम से श्री विष्णु भग

गोदावरी नदी की महत्वपूर्ण जानकारी (Important information about Godavari river)

गोदावरी   दक्षिण   भारत  की एक प्रमुख  नदी  है| इसे दक्षिण की  गंगा  भी कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमघाट की पर्वत श्रेणी के अन्तर्गत  त्रिम्बक  पर्वत से हुई है। यह  महाराष्ट्र  में  नासिक  जिले से निकलती है।    इसकी लम्बाई लगभग 1450 किलोमीटर है।   गोदावरी की  उपनदियों  में प्रमुख हैं प्राणहिता, इन्द्रावती, मंजिरा। यह महाराष्ट,तेलंगना और  आंध्र प्रदेश  से बहते हुए राजहमुन्द्री शहर के समीप  बंगाल की खाड़ी  मे जाकर मिलती है। गोदावरी नदी गंगा नदी के बाद भारत की सबसे बड़ी नदी है | महाराष्ट्र के नासिक नगर से 30 कि.मी. पश्चिम में ब्रह्मगिरि पर्वत से निकलकर गोदावरी नदी लगभग 1,450 कि.मी. तक प्रवाहित होकर मछलीपत्तनम नरसापुर के उत्तर तथा राजमहेन्द्री से 70 कि.मी. पूर्व ही सात भागों- कौशिकी, वृद्धगौतमी, गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी तथा तुल्या वसिष्ठा में विभाजित होकर बंगसागर में प्रविष्ट हो जाती है। सात भागों में विभाजित होने से सप्त गोदावरी भी इसका नाम पड़ा है। नामकरण - कुछ विद्वानों के अनुसार, इसका नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द 'गोद' से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है | एक बा