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भानगढ़ किला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्माएं और शुरू हो जाता है मौत का तांडव

 दुनिया में ऐसे कई स्थान हैं जहाँ बुरी आत्माओं ने अपना कब्जा जमा रखा है | ऐसा ही एक स्थान है राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ भानगढ़ का किला, जो अपनी भुतिया कहानियों की वजह से जाना जाता है | भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है | इस किले से कुछ किलोमीटर कि दुरी पर सरिस्का राष्ट्रिय उधान (Sariska National Park) हैं |

भानगढ़ का परिचय 

भानगढ़ के प्राचीन स्थल की स्थापना आमेर के शासक राजा भगवंत दास ने 16वीं शताब्दी में की थी, जिसे बाद में राजा मान सिंह के भाई माधोसिंह की रियासत की राजधानी बना दिया गया | माधोसिंह मुगल सम्राट अकबर (1556-1605 ई.) के दरबार में दीवान था |
भानगढ़ के मुख्य अवशेषों में प्राचीर, द्वार, बाजार, हवेलियाँ, मन्दिर, शाही महल, छतरियाँ , मकबरा आदि है | मुख्य मन्दिरों में गोपीनाथ, सोमेश्वर, केशव राय एवं मंगला देवी है जो नागर शैली में बने हुए हैं | शाही महल सात मंजिला माना जाता है, परन्तु अब इसकी चार मंजिलें ही शेष बची हैं | पूरी बस्ती एक के बाद एक तीन प्राचीर से सुरक्षित की गई थी | ब्रह्मा प्राचीर में प्रवेश हेतु पाँच द्वार बने है, जिन्हें उत्तर से दक्षिण की और क्रमशः अजमेरी, लाहोरी, हनुमान, फुलवारी एवं दिल्ली द्वार के नाम से जाना जाता है |

भानगढ़ की कहानी

भानगढ़ किले के बारे में प्रसिद्ध एक कहानी के अनुसार भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बेहद खुबसूरत थी | उस समय उनके रूप की चर्चा पुरे राज्य में थी और देश के कोने-कोने के रजा उनसे विवाह करना चाहते थे | उस समय उनकी उम्र 18 वर्ष ही थी | उस समय कई राज्यों से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे | उसी दौरान वे एक दिन अपनी सखियों के साथ बाजार गयी थी | राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर इत्र की खुसबू ले रही थी | उसी समय उस दुकान से कुछ ही दुरी पर सिंधु सेवड़ा नाम का तांत्रिक खड़ा होकर राजकुमारी रत्नावती को बहुत ही गौर से देख रहा था | सिंधु सेवड़ा उसी राज्य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था | ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी रत्नावती के रूप का दीवाना था और उनसे बेहद प्रेम करता था | वो किसी भी तरह राजकुमारी रत्नावती को हासिल करना चाहता था | इसलिए उसने उस दुकान के पास जाकर एक इत्र की बोतल जिसे राजकुमारी पसंद कर रही थी, उस पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था | लेकिन एक विश्वशनीय व्यक्ति ने राजकुमारी को इसके बारे में बता दिया |
राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र की बोतल को उठाया और उसे वही पास के एक पत्थर पर पटक दिया | पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गई और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया | इसके बाद वो पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंधु सेवड़ा के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुचल दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी | मरने से पहले तांत्रिक ने श्राप दिया की इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्दी ही मर जायंगे और दुबारा जन्म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी |
उस तांत्रिक की मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच योद्ध हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये | यहाँ तक की राजकुमारी रत्नावती भी उस श्राप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी | एक ही किले में एक साथ इतनी सारे लोगों की मौत होने के कारण पुरे किले में मौत की चिंखें गूंज गयी और आज भी इस किले में उनकी रूहें घुमती हैं | इस किले के कमरों में महिलओं के रोने या फिर चूडियों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है |

किले में सूर्यास्त बाद जाना मना है 

इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है | किले के चारों तरफ भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग (ए.एस.आई) की टीम मौजूद रहती हैं | ए.एस.आई ने सख्त निर्देश दे रखे है की भानगढ़ की सीमा में सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के बाद प्रवेश वर्जित है |
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