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केदारनाथ

केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्तिथ है | उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है | केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा है | वर्तमान मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था | यह 3,581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और सोनप्रयाग से 21 किलोमीटर की दूरी पर है। नवंबर के महीने में सर्दियों के आने पर, भगवान शिव की पवित्र मूर्ति, केदारनाथ से उखीमठ ले जाते है, और मई के पहले हफ्ते में केदारनाथ में पुन: स्थापित की जाती है | यह मंदिर कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के पहले दिन बंद हो जाता है और हर साल वैशाख (अप्रैल-मई) में फिर से शुरू होता है | केदारनाथ हिंदू भक्तों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ यात्राओं में से एक है। यह मंदाकिनी नदी के मुख में गढ़वाल हिमालय की पहाड़ियों के बीच स्थित है |

पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे | इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे | भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले | वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे | भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे |  दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए | भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले | पांडवों को संदेह हो गया था | अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया | अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए | भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया | भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए | उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया | उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते है |  ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ | अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है | शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए | इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है | यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं |

यहाँ तक पहुँचने के दो मार्ग हैं। पहला 14 किमी लंबा पक्का पैदल मार्ग है जो गौरीकुण्ड से आरंभ होता है।गौरीकुण्ड उत्तराखंड के प्रमुख स्थानों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून इत्यादि से जुड़ा हुआ है। दूसरा मार्ग है हवाई मार्ग। राज्य सरकार ने अगस्त्यमुनि और फ़ाटा से केदारनाथ के लिये पवन हंस नाम से हेलीकाप्टर सेवा आरंभ की है और इनका किराया उचित है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर बंद कर दिया जाता है और केदारनाथ में कोई नहीं रुकता। नवंबर से अप्रैल तक के छह महीनों के दौरान भगवान केदा‍रनाथ की पालकी गुप्तकाशी के निकट उखिमठ नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दी जाती है।
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